ऐसे हुई लादेन से मुलाकात
संस्मरण
ऐसे हुई लादेन से मुलाकात
हामीद मीर,
इस्लामाबाद से
दुनिया भर में आतंक का
पर्याय बन चुके ओसामा बिन लादेन की तलाश में क़ाबुल से लेकर जलालाबाद और तोरा-बोरा
की पहाड़ियों से वजीरिस्तान तक पिछले कई सालों से अमरीकी फौजें अपने जूते चटकाती
फिर रही हैं. पाकिस्तान के तेज़ तर्रार पत्रकार और जिओ टीवी के संपादक हामिद मीर न
केवल लादेन का ठिकाना पाने में कामयाब हुए, उन्होंने लादेन का साक्षात्कार भी किया.
9/11 के बाद ओसामा बिन लादेन का तीन बार साक्षात्कार लेने वाले दुनिया के अकेले
पत्रकार हामिद मीर शुरुवाती अंकों से ही रविवार के लिए लिख रहे हैं. भारत-पाकिस्तान
में पहली बार रविवार डॉट कॉम में लादेन से उनकी मुलाकात का यह ब्यौरा प्रकाशित हो
रहा है.
सात साल पहले 9/11 को एक आदमी ने दुनिया बदल दी थी. दुर्भाग्य से इस बात की कोई
गारंटी नहीं दी जा सकती कि वह इसी तरह के और हमलों के जरिए 9/11 के बाद की दुनिया
को नहीं बदल सकता. दुनिया की एकमात्र महाशक्ति ने उसे अपना सबसे खतरनाक दुश्मन करार
दिया है और इस महाशक्ति को एक दशक से भी ज्यादा समय से उसकी तलाश है. लेकिन हकीकत
यह है कि ओसामा बिन लादेन यानी दुनिया का सबसे वांछित शख्स 11 सितंबर 2001 के बाद
अफगानिस्तान में कई बार मौत से बच निकलने में कामयाब हो चुका है.
कई बार तो वह दुनिया की सबसे अत्याधुनिक उपग्रह प्रणाली और सबसे खतरनाक मिसाइलों को
अपनी चालाकियों के जरिए झांसा देने में कामयाब हो गया तो कई बार वह महज कुछ मिनट के
फासले से दुश्मनों के हमलों से सिर्फ अपनी किस्मत की वजह से बच निकला.
वास्तव में तालिबान और अल कायदा पर अमेरिकी हवाई हमले 7 अक्तूबर 2001 को शुरू हुए
थे और 8 नवंबर 2001 को ओसामा बिन लादेन को डा. अयमान अल जवाहरी के साथ काबुल में
देखा गया था. ये लोग अल कायदा की एक बैठक और 6 नवंबर को अफगानिस्तान के उत्तरी शहर
मजार-ए-शरीफ में मारे गए उज्बेक कमांडर जुम्मत खान नामंगनी की शोक सभा में हिस्सा
लेने के लिए जलालाबाद से वहां आए थे.
मेरी फोटो नहीं लेना
नामंगनी सोवियत सेना का पूर्व कमांडर था और 1980 के दशक के आखिर में अल कायदा से
जुड़ गया था. वह अमेरिका समर्थक नार्थन एलायंस का विरोध करने वाले तालिबाल और अल
कायदा के लड़ाकों की अगुवाई कर रहा था.
जबकि उत्तरी अफगानिस्तान में लड़ाका अब्दुल राशिद दोस्तम और पूर्वी और दक्षिणी
अफगानिस्तान में मोहम्मद अतीफ विरोध का नेतृत्व कर रहे थे. पहले आतिफ की और उसके
बाद नामंगनी की मौत हो गई. उनकी मौत अमेरिका के शत्रुओं के लिए बड़ा धक्का थी.
मोहम्मद आतिफ और नामंगनी की मौत के बाद अल कायदा की बहुराष्ट्रीय मुस्लिम आर्मी
बदला लेने पर उतारु हो गई.
8 नवंबर को काबुल में अल कायदा के चुनिंदा नेताओं की बैठक में ओसामा बिन लादेन ने
इन दोनों को गहरी श्रद्धांजलि अर्पित की. इसी बैठक में उसने हालात की समीक्षा भी
की. ठीक इसी दिन दुनिया के सबसे वांछित शख्स से काबुल में साक्षात्कार लेने के लिए
समय दिया गया था.
मुझे मेरे अपने कैमरे से बिन लादेन की एक भी तस्वीर लेने की इजाजत नहीं दी गई. उसके
एक बेटे अब्दुल रहमान ने अपने पिता के साथ मेरी तस्वीर खींची. अब्दुल रहमान ने अपने
खुद के कैमरे से यह तस्वीरें खींची और फिर मुझे उसकी फिल्म दे दी.
सुरक्षा के इस इंतजाम के बावजूद एक महिला जासूस अनेक महत्वपूर्ण अरब लोगों की काबुल
में इस अप्रत्याशित आवाजाही पर गौर करने में कामयाब हो गई. मुझे उस समय की एक घटना
याद है जब मैं लादेन और डा. जवाहरी के साथ चाय पी रहा था.
बिन लादेन ने मुझे याद दिलाया कि उसके साथ यह मेरा तीसरा साक्षात्कार है. उसने मुझे
बताया कि पहले साक्षात्कार के बाद प्रकाशित रिपोर्ट में मैंने अनुवाद की कुछ
गलतियां कर दी थीं लेकिन उसने इसके साथ ही यह भी कहा कि उसे कहीं भी यह नहीं लगा कि
लेख को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया.
उसने उम्मीद जताई कि इस साक्षात्कार में ऐसी गलतियां नहीं करुंगा. जिस छोटे से कमरे
में हम चाय पी रहे थे, वहां अल कायदा के 20 और नेता भी मौजूद थे. उस दिन की बातचीत
में साफ हो गया कि उनमें से अधिकांश लोगों की राय थी कि अमेरिका समर्थित नार्थन
एलायंस सिर्फ जनरल परवेज मुशर्रफ जिन्होंने अमेरिकियों के लिए पाकिस्तान में हवाई
ठिकाने मुहैया कराएं है, के समर्थन के कारण ही काबुल के नजदीक पहुंचने में सफल हुई
है.
नीले बुरके में जासूस
अचानक कमरे में अल कायदा का एक अरब लड़ाका कमरे में दाखिल हुआ और उसने अपने नेताओं
को बताया कि उन लोगों ने बैठक स्थल से कुछ मीटर की दूरी पर नीला बुरका पहने एक
महिला को पकड़ा है. वह भिखारन के भेष में जासूसी कर रही थी. मैं जहां बिन लादेन का
साक्षात्कार कर रहा था, उस स्थल के बाहर चौकसी कर रहे अल कायदा के सिक्योरिटी
गार्ड्स से भी वह पैसे मांग रही थी.
आगे पढ़ें
लेकिन कुछ देर बाद एक गार्ड ने गौर किया कि उसकी दिलचस्पी भीख मांगने से कहीं
ज्यादा उनकी गतिविधियों पर गौर करने में है. इसके बाद अल कायदा लड़ाके ने उसकी
गतिविधियों की निगरानी शुरू कर दी.
थोड़ी ही देर में उसने उसे थोराया सेटेलाइट फोन पर किसी “शेख” से बात करते हुए रंगे
हाथ पकड़ लिया. बैठक में यह सूचना अरब भाषा में दी गई लेकिन मैं भी उनकी बातों का
सार समझ गया. बिन लादेन ने फौरन अपने एक नजदीकी को आदेश दिया कि उसके 'मेहमान' को
किसी तरह का नुकसान नहीं होना चाहिए.
लादेन के इस सहयोगी मोहम्मद ने मुझे बताया कि वह मुझे जलालाबाद लेकर जाएगा.
जल्दबाजी में मैंने ओसामा बिन लादेन को अलविदा कहा और एक निजी कार से मोहम्मद के
साथ रवाना हो गया.
काबुल के बाहर तालिबान के गार्ड्स ने हमें पकड़ लिया क्योंकि मेरी दाढ़ी नहीं थी और
मेरे साथ एक कैमरा भी था जिसका इस्तेमाल मैंने साक्षात्कार के दौरान नहीं किया था.
मोहम्मद ने तालिबान को नहीं बताया कि वह अल कायदा से है. इसके बजाए उसने उन्हें
बताया कि वह गृहमंत्री मुल्ला अब्दुल रजाक अकंड के लिए काम करता है.
तालिबान ने गृहमंत्री से इस बात की तस्दीक की और हमें तीन घंटे बाद छोड़ दिया. हम
जब जलालाबाद पहुंचे तब तक शाम हो चुकी थी.
मोहम्मद मुझे एक बड़े से मकान पर छोड़ कर कहीं चला गया.
दो घंटे बाद वह कुछ चौंकाने वाले समाचारों के साथ लौटा. उसने दावा किया कि काबुल
में जहां मैंने उसके “शेख” के साथ मुलाकात की थी उसे वहां से हमारे निकलने के 15
मिनट के बाद ही बम से उड़ा दिया गया लेकिन इससे पहले ही “शेख” और उसके साथी सौभाग्य
से वहां से हमारे जाने के बाद निकल चुके थे और इसलिए किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ.
मुस्कराते हुए मोहम्मद ने मुझसे कहा- “ भाई आप हमारे साथ शहीद होने से बच गए.”
मुझे ठीक-ठीक याद नहीं आ रहा था कि पहले का साक्षात्कार मैंने किसी स्थान पर लिया
था. उसने मुझे बताया कि वह काबुल के वजीर अकबर खान इलाके में स्थित है जहां मैंने
दुनिया के सबसे वांछित शख्स से मुलाकात की थी.
फिर मुलाकात
मैंने जलालाबाद में वह रात अपनी दाईं और बाईं ओर हो रही अमेरिकी बमबारी के बीच
काटी. अगली सुबह जलालाबाद में मोहम्मद ने मुझसे विदा ली और मैं सड़क के रास्ते
पाकिस्तान के लिए निकल गया.
अल कायदा
के बहुत से लड़ाके तोरा बोरा के रास्ते से पाकिस्तान के इलाके में
प्रवेश कर गए लेकिन लादेन एक छोटे समूह के साथ दूसरी दिशा की ओर चला गया
था. |
2004 में जब मैं अफगानिस्तान में राष्ट्रपति का चुनाव कवर करने गया था तब हमारी एक
और मुलाकात हुई. इस मुलाकात में उसने मुझे बताया कि कैसे वह और उसका शेख पूर्वी
पाकिस्तान में तोरा बोरा की पहाड़ी में अमेरिकी एयर फोर्स द्वारा कई दिनों तक
लगातार की गई बमबारी में बच निकले थे.
दिसंबर 2001 के बाद ही बिन लादेन और उसके
लड़ाके अमेरिका द्वारा हाजी जहीर, हाजी जमन और हजरत अली की मदद से तैयार किए गए
घेरे को तोड़ने में कामयाब हो पाए थे.
दरअसल कई बार अल कायदा की रणनीति अमेरिकी फिल्मों के शिकारियों की रणनीति की तरह
थी. जैसे अल कायदा के बहुत से लड़ाके तोरा बोरा के रास्ते से पाकिस्तान के कबायली
इलाके कुर्रम में प्रवेश कर गए लेकिन ओसामा बिन लादेन एक छोटे समूह के साथ दूसरी
दिशा की ओर चला गया था. प्रत्यक्षदर्शी मोहम्मद भी इस समूह में शामिल था. कुछ चेचेन
और सउदी लड़ाकों ने उनके लिए कवर अप फायरिंग की थी और वे सारी रात पाक्तिया की ओर
पैदल चलते रहे.
बाद में एक शीर्ष अफगान सुरक्षा अधिकारी लुतफुल्ला मशाल ने मुझसे बातचीत में पुष्टि
की कि दिसंबर 2001 में लादेन तोरा बोरा से पाक्तिया निकल भागा था. गोपनीय तरीके से
मशाल उनके पीछे चल रहा था. उसने दावा किया कि ओसामा बिन लादेन पाक्तिया से नार्थ
वजीरिस्तान में प्रवेश कर गया था. वहां कुछ समय बिताने के बाद वह अफगानिस्तान के
पूर्वी प्रांत खोस्ट की पहाड़ियों की ओर चला गया.
अब राष्ट्रपति हामिद करजई के साथ काम कर रहे मशाल का कहना है कि अमेरिकी ओसामा बिन
लादेन को तोरा बोरा में पकड़ने से चूक गए क्योंकि तब वे जमीन पर अपनी फौज की तैनाती
के लिए तैयार नहीं थे.
दरअसल अमेरिकी नार्थन एलायंस के कमांडर हजरत अली के भरोसे थे और उसने उन्हें धोखा
दे दिया. उच्च स्तरीय अफगानी सूत्रों के मुताबिक हजरत अली ने कायदा के हाथों लुटने
के बाद उन्हें सुरक्षित गलियारा मुहैया कराया था. इत्तफाक से हजरत अली आज अफगान
संसद का सदस्य है.
04.05.2008, 00.14 (GMT+05:30) पर प्रकाशित