लोहिया काल यानी संसद का स्वर्णिम काल
विचार
लोहिया काल यानी संसद का स्वर्णिम काल
रघु
ठाकुर
डॉ. लोहिया, महात्मा गॉंधी के बेहद विश्वासपात्र लोगों में से थे. जिनकी समझ,
राष्ट्रप्रेम, ज्ञान और संकल्प के बारे में समय - समय पर गॉंधी जी ने अपने उद्गार
व्यक्त किये थे. महात्मा जी से लोहिया की मुलाकात उनके पिता स्व. हीरालाल लोहिया ने
ही कराई थी. स्व. हीरालाल जी, महात्मा गॉंधी के अनुयायी थे तथा स्वतंत्रता संग्राम
में सक्रिय भाग लेने वाले सेनानी भी थे. जब गोआ में, गोआ की आजादी के पहिले सभा
करते हुये पुर्तगाली पुलिस प्रशासन ने लोहिया को गिरफ्तार किया था तो महात्मा गॉंधी
ने सार्वजनिक वक्तव्य देकर कहा था कि ’’जब तक राममनोहर जेल में है, तब तक भारत की
आत्मा जेल में है.’’ तथा डॉ. लोहिया को रिहा करने की अपील की थी.
भारत विभाजन के कांग्रेस के निर्णय से महात्मा गॉंधी न केवल दुखी थे बल्कि वे
इतिहास चक्र को उलटने की प्रक्रिया पर चिंतन, मनन व कार्य भी कर रहे थे. उन्होने जब
यह कहा कि कांग्रेस जिस उद्देश्य के लिये बनाई गई थी, वह पूरा हो चुका है अतः उसे
भंग कर देना चाहिये तथा कांग्रेस टोपी को देखकर लोग पत्थर मारेंगे. तो वे समझ चुके
थे कि कांग्रेस अब केवल जड़ व सत्ता केन्द्रित संस्था बन चुकी है जिसे समाप्त कर नई
संस्था जो उनके विचारों के प्रति समर्पित हो, को बनाना होगा. शायद इसीलिये उन्होने
15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के जश्न से अपने आपको दूर रखा था तथा वे दूर नोआ
खाली में जाकर हिन्दु मुस्लिम एकता के लिये कार्य कर रहे थे.
तत्कालीन कांग्रेस नेतृत्व उन्हें धोखा दे चुका था तथा उससे उन्हें कोई विषेष
उम्मीद षेश नही बची थी अतः गॉधी जी ने नये नेतृत्व को गढ़ने व आगे लाने के कई प्रयोग
षुरू किये थे. उन्होने प्रयास किया था कि कांग्रेस का अध्यक्ष आचार्य नरेन्द्र देव
या जयप्रकाश नारायण को बनाया जाये. उन्होने कहना षुरू किया था कि अब मेरी कोई नही
सुनता तथा जो गॉंधी कहते थे मैं 100 साल जिंदा रहूंगा, उन्होने कहना शुरु किया था,
मैं अब जिंदा नही रहना चाहता. गॉंधी का अंर्तमन अपनी बनाई कांग्रेस को पथभ्रष्ट
होते देख, अत्यधिक दुखी था.
भारत विभाजन के कांग्रेस के प्रस्ताव के बाद उस प्रस्ताव को बदलवाने के लिये
महात्मा गॉंधी ने कार्यसमिति की विशेष बैठक बुलाने का आग्रह किया था. इस बैठक में
गॉंधी जी के विभाजन के विरूद्ध मत से जो लोग सहमत थे उनमें खान अब्दुल गफ्फार के
साथ डॉ. राममनोहर लोहिया भी थे.
शायद गॉंधी के प्रति लोहिया व समाजवादियों के बढ़ते प्रेम तथा समाजवादियों की गॉंधी
के विचारों के प्रति प्रतिबद्धता की आषंका से ही जवाहरलाल नेहरू के इशारे पर
कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी ( जो कांग्रेस का एक प्रकार का अंदरूनी उत्प्रेरक संगठन
था ) को भंग करने या कांग्रेस छोड़कर बाहर जाने का निर्णय कांग्रेस संगठन ने किया
होगा. यद्यपि देश में आम समझ यह बनाई गई है कि स्व. वल्लभ भाई पटेल, समाजवादियों के
विरूद्ध थे तथा उन्होने ही कांग्रेस कार्यसमिति में यह निर्णय कराया था परन्तु यह
विष्लेषण अर्ध सत्य तथा भ्रामक नजर आता है. क्या स्व. नेहरू के न चाहने के बावजूद
ऐसा प्रस्ताव संभव था ? क्या इस प्रस्ताव के विरूद्ध स्व. नेहरू ने मत विभाजन कराया
?
घटनाओं के सही विष्लेषण से तो ऐंसा महसूस होता है कि नेहरू की योजना पर ही वल्लभ
भाई कार्यरत थे. जिस प्रकार कांग्रेस के नेतृत्व ने सत्ता हासिल करने के लिये भारत
का विभाजन षड़यंत्र पूर्ण ढंग से तथा गॉंधी जी की राय के विपरीत स्वीकृत कराया, उसी
प्रकार अपनी निजी सत्ता व परिवार सत्ता के लिये स्व. नेहरू ने यह कांग्रेस का
विभाजन प्रायोजित किया ताकि उनके या उनके परिवार को चुनौती देने वाला नेतृत्व
कांग्रेस के अंदर न रहे.
गॉंधी जी की हत्या के पूर्व तथा भारत विभाजन व आजादी के बाद लोहिया गॉंधी के साथ
निरंतर संपर्क में थे तथा हिन्दु मुस्लिम एकता के लिये कार्य कर रहे थे. गॉंधी व
लोहिया की जीवन षैली में बढ़ा फर्क था. लोहिया देर से सोने वाले व देर से जागने वाले
थे जबकि महात्मा गॉंधी के दिन का आरंभ सूर्योदय के पूर्व ही हो जाता था. गॉंधी जी
ने एक दिन बातचीत में लोहिया से कहा कि तुम समाजवादियों की बातें तो अच्छी हैं
परन्तु तुम्हारा कोई संगठन नही है. लोहिया ने गॉंधी जी को समाजवादियों के
संगठनात्मक आधार व शक्ति के बारे में विस्तार से अवगत कराया. परन्तु गॉंधी जी
समाजवादियों के संगठन की शक्ति से सहमत नही थे.
गांधीजी ने डॉ. लोहिया से कहा यह तो बहुत कम है. उन्होने संगठन विस्तार के कुछ
सुझाव भी दिये तथा पुनः आने को कहा. फिर कुछ दिन श्री लोहिया देर रात्रि पहुंचे तथा
गॉंधी जी के कमरे में नीचे लगे बिस्तर पर चुपचाप जाकर सो गये ताकि गॉंधी जी की नींद
न टूटे. गॉंधी जी अचानक उठे और उन्होने लोहिया से कहा ’’राममनोहर तुम सिगरेट पीना
नही छोड़ सकते?’’ लोहिया, गॉंधी जी के प्रश्न को सुनकर अवाक थे, गॉंधी को इन्कार तो
कर नही सकते थे अतः कहा कि हॉं, छोड़ सकता हूं तथा गॉंधी जी यह सुनकर उतनी ही गहरी
निद्रा में पुनः सो गये जैंसे वे जागे ही न हो. उसके बाद की जो तिथि लोहिया को
मिलने के लिये गॉंधी जी ने दी थी उसके पूर्व ही महात्मा गॉंधी की हत्या हो गई. तथा
निर्णायक बात तो शायद देश की राजनीति पर दीर्घकालिक प्रभाव डालती, अधूरी ही रह गई.
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